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देश में आई फ्लू का कहर, जानिए कैसे बचें

दिल्ली से लेकर बिहार और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक लोग लाल आंखें लिए घूम रहे हैं. इन सभी राज्यों में इस बार मॉनसून जल्दी आया है और मानो देर तक टिके रहने के इरादे से आया है. जगह जगह भरा हुआ पानी और वातावरण में हर वक्त उमस और नमी वायरस और बैक्टीरिया के फैलने के लिए सबसे अच्छा मौका होते हैं. तो इस बार आई फ्लू ने लोगों की आंखों में लाल डोरे डाल दिए हैं. मेडिकल भाषा में आंखे लाल होने की इस बीमारी को कन्जक्टिवाइटिस कहते हैं कुछ लोग इसे पिंक आई या आई फ्लू भी कहते हैं.

आई फ्लू से दिल्ली बेहाल

बाढ़ के पानी से आंखों के पानी तक, इस बार मॉनसून ने ऐसी तबाही मचाई है कि लाल आंखों की बीमारी कन्जक्टिवाइटिस बुरी तरह से फैल गई है. दिल्ली के एम्स की ओपीडी में रोजाना आई फ्लू की शिकायत वाले 100 मरीज़ आ रहे हैं. प्राइवेट आई अस्पतालों में भी 40 से 50 मरीज़ रोज कन्जक्टिवाइटिस से परेशान होकर पहुंच रहे हैं.

दिल्ली के एक प्राइवेट आई हॉस्पिटल में पिछले साल जुलाई में कंन्जक्टिवाइटिस के 600 मामले आए थे. इस बार अभी तक जुलाई में ही 1200 से ज्यादा मरीज इलाज के लिए पहुंच चुके हैं. शार्प साईट सेंटर के निदेशक डॉ समीर सूद के मुताबिक कन्जक्टिवाइटिस आंखों के सफेद हिस्से में इरिटेशन से शुरु होता है. मॉनसून, उमस, नमी और पानी वाला वातावरण इस आई फ्लू को तेज़ी से फैलने में मदद करता है. वैसे तो इस बीमारी का मरीज पांच से सात दिन में रिकवर हो जाता है लेकिन ये वक्त बहुत परेशानी भरा हो सकता है. लेकिन मरीज अपनी मर्जी से इलाज ना करें. इसकी बड़ी वजह ये है कि आई फ्लू होने की तीन बड़ी वजहे हैं और वजहों के हिसाब से ही इलाज हो सकता है.

लक्षण

आंखों में जलन हो. पानी आने लगे. आंखों में दर्द हो और वो लाल हो जाएं तो समझ लीजिए कि आपको इंफेक्शन हो चुका है. ये इंफेक्शन एक से दूसरे मरीज में बहुत तेज़ी से फैलता है – इसलिए आपको इससे बचने की बहुत ज़रुरत है. एलर्जी , वायरल इंफेक्शन या बैक्टीरियल इंफेक्शन जैसी बीमारी हो, उसी के हिसाब से आई ड्रॉप्स दी जाती हैं. जिस मरीज को एंटीबायोटिक दवाओं की जरुरत हो उन्हें दवाएं भी दी जाती हैं.

कैसे करें बचाव?

कोरोनावायरस की तरह ही इस बीमारी में भी मरीज के लिए आईसोलेशन ज़रुरी है जिससे ये दूसरों को ना फैले. नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ अनुराग वाही के मुताबिक मरीज को काला चश्मा पहनना चाहिए. इससे दो फायदे हो सकते हैं. पहला फायदा ये कि मरीज बार बार अपनी आंखों को हाथ लगाने से बचेगा. दूसरा फायदा ये होगा कि ऐसे मरीज फोटो सेंसिटिव होते हैं जिसकी वजह से उन्हें तेज रोशनी से परेशानी हो सकती है. तो काला चश्मा तेज़ रोशनी से भी बचाएगा. साफ पानी से आंखों को धोते रहें और हाथों को बार-बार साबुन या सैनिटाइज़र से साफ करें. अपनी पर्सनल चीजें जैसे तौलिया, तकिया, रुमाल, चश्मा वगैरह किसी से शेयर ना करें. बार-बार चीजों को ना छुएं – जैसे दरवाजे का हैंडल, टेबल वगैरह – आपके हाथों से इंफेक्शन किसी भी सरफेस पर रह सकता है और वहां से दूसरे तक इंफेक्शन पहुंच सकता है.

जिन्हें ये बीमारी नहीं हुई उन लोगों को भी भीड़ में जाने से बचना चाहिए. पब्लिक प्लेस या भीड़ वाली जगह पर ज़ीरो पावर का साधारण चश्मा या सनग्लासिस लगा लेने चाहिए. ताकि आप खुद बार बार आंखों को हाथ ना लगाएं. बच्चों को ये बीमारी हो तो उन्हें स्कूल नहीं भेजना चाहिए. मरीज की आंखों में देखने से ये बीमारी नहीं फैलती. वैसे ये बीमारी 5-7 दिन में ठीक हो जाती है लेकिन कुछ मरीजों में आंखों के सफेद हिस्से से बढ़कर इंफेक्शन आंखों की पुतली तक पहुंच सकता है, ऐसे मामले खतरनाक हो सकते हैं.

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